तुम हारे, मैं जीता
2011-06-18
जब तक जिंदा हूं, देख-सुन सकता हूं, तब तक जहां तक निगाहें, वहां तक फतेह। घर छीन लो, समाज छीन लो। लेकिन प्रकृति को कौन मुझसे छीन सकता है? वो तो जन्म से मेरी है और मरने पर भी रहेगी।और भीऔर भी
तुम जो इतने बड़े हो…
2011-01-09
हमारी नजरों में चढ़े हो तभी तो इतने बड़े हो। समझ बदल गई, अहसास बदल गया और हमने अपनी नजरों से गिरा दिया तो कहीं के नहीं रहोगे भाई। फिर काहे इतना इतराते हो, शान बघारते हो!और भीऔर भी