भीतर इंद्रसभा, बाहर से भूतबंगला!

किसी सूनी बावड़ी को, पुराने किले, भव्यतम बंगले को भूतबंगला घोषित कर दो। लोगबाग उसकी तरफ झांकने से भी तौबा कर लेंगे। जो गलती से घुस जाएं तो उन्हें लूटखसोट कर इस कदर डरा दो कि दोबारा उधर कदम बढ़ाने की जुर्रत न करें। फिर पब्लिक की निगाहों से दूर मज़े से अंदर बैठकर अपना धंधा चलाते रहो। हमारे यहां शेयर बाज़ार का यही हाल है। बाहर से भूतबंगला बना हुआ है। लोग उससे डरते ही नहीं, नफरत करते हैं। गलती से जो कभी आ गए, वो लुटने-पिटने के बाद दूर ही रहना श्रेयस्कर समझते हैं।

इस चक्कर में होता क्या है? वे अपनी बचत बैंकों में रखते हैं, जहां उन्हें बैंक 4 से 9 फीसदी ब्याज देता है। मुद्रास्फीति की सरकारी दर 10 फीसदी के आसपास है, जबकि असल में यह 20 फीसदी से कम नहीं चल रही। बैंक उनके धन को 12-24 फीसदी ब्याज पर चढ़ाकर नोट बनाते है, जबकि उनके धन की औकात घटती चली जाती है। उनकी बचत दिखने में भले ही फूलती हो, लेकिन अंदर से खोखली होती जाती है। यह एक ही जगह से बच और बढ़ सकती है। वो जगह है जहां से बैंक, बीमा कंपनियां, अमीर लोग और म्यूचुअल फंड तक सभी कमाते हैं। वो है कॉरपोरेट क्षेत्र। इसमें मैन्यूफैक्चरिंग से लेकर सर्विस सेक्टर की कंपनियां शामिल हैं।

इसमें भी फायदा हम उन्हीं कंपनियों का ले सकते हैं जो शेयर बाज़ार में लिस्टेड हैं, जो लोगों की बचत से धंधा बढ़ाती हैं और हासिल लाभ को लोगों के साथ बांटती हैं। डरा हुआ शख्स अपना धन एचडीएफसी बैंक के बचत खाते में डालकर निश्चिंत रहता है और साल भर में 4 फीसदी ब्याज कमाता है। बहुत हुआ तो एफडी में डालकर 9 फीसदी कमा लेगा। समझदार शख्स वही धन एचडीएफसी बैंक के शेयरों में लगाता है और बैंक के मुनाफे के 30 फीसदी बढ़ने का लाभ उठाता है क्योंकि या तो बैंक डिविडेंड (लाभांश) देगा, नहीं तो लाभ को इस तरह निवेश करेगा जिससे भविष्य में उसका लाभ और बढ़ जाएगा। चूंकि समझदार शख्स शेयरों को खरीदकर एचडीएफसी बैंक के स्वामित्व में हिस्सेदार बन गया है, इसलिए बैंक के लाभ में उसका हिस्सा उसके शेयरधारक बने रहने तक बराबर मिलता रहेगा।

यह सीधा-सा गणित देश की 98 फीसदी आबादी को नहीं समझ में आता। आप कह सकते हैं कि जहां 80 फीसदी लोग 20 रुपए प्रतिदिन से कम में गुजारा करते हों, वहां इस गणित की बात करना बकवास है। एकदम खरी बात है। मगर सवाल यह है कि बाकी बचे 18 फीसदी लोगों की बचत की जो लूट हो रही है क्या उसे यूं ही चलने दिया जाए? इनकी बचत का सही नियोजन होगा तभी बैंकों की अंधी लूट खत्म होगी, देश का औद्योगिक विकास होगा। जो अच्छे-अच्छे विचार संसाधनों के अभाव में दम तोड़ देते हैं, उन्हें फलने-फूलने का मौका मिलेगा। ऐसा होने पर बाकी 80 फीसदी लोग भी देश की बढ़ती समृद्धि में किसी न किसी रूप में भागीदार होने लगेंगे। आपस में गुंथे समाज में ऐसे ही समृद्धि और संपन्नता का बंटवारा होता है। एक का खर्च दूसरी की आमदनी होता है। एक की आरामतलबी दूसरे का रोज़गार बन जाती है। कुछ नहीं तो ड्राइवर से लेकर घर के नौकर का काम तो मिल जाता है।

अभी हो यह रहा है कि विदेशी संस्थागत निवेशक (एफआईआई) भारतीय कॉरपोरेट क्षेत्र की कमाई को उड़ाकर अपने साथ लिये जा रहे हैं। शेयर बाज़ार के माध्यम से करीब-करीब एक चौथाई मालिकाना उन्होंने भारत की लिस्टेड कंपनियों पर हासिल कर लिया है। 17-18वीं सदी में भारतीय संसाधनों की इसी तरह की लूट ईस्ट इंडिया कंपनी ने की थी। तब भी हम अपनी दुनिया में मस्त रहे और भयंकर अकाल की नौबत आ गई। आज भी हम सक्रिय नहीं हुए तो देश में पूंजी का अकाल पड़ेगा, जिसका संकेत चालू खाते के घाटे के जीडीपी के 6.7 फीसदी तक पहुंचने से मिलने लगा है। दलाली में डूबी सरकार सोचती है कि दलाली से स्थिति संभल जाएगी। वित्त मंत्री चिदंबरम विदेशी निवेशकों को रिझाने के करतब में सूट-बूट पहनकर विश्व-भ्रमण पर निकले हैं। लेकिन विदेशी निवेशक आएंगे तो भारत का कल्याण करने के लिए नहीं, बल्कि भारत की स्थिति का फायदा कमाने के लिए आएंगे।

ऐसे में कठिन-कठोर हकीकत यही है कि अगर देश के 20 फीसदी खाते-पीते संपन्न लोग पूंजी बाज़ार या शेयर बाज़ार के बारे में सही समझ नहीं बनाते, अपनी बचत को औद्योगिक विकास में लगाने को तैयार नहीं होते तो देश से दलाली का साम्राज्य खत्म नहीं हो सकता। भारत में कभी भी सबके पास काम और काम भर का नामा (धन) नहीं आ सकता। देश अंदर-अंदर से खोखला होता जाएगा। हमारी बचत पर ठग और विदेशी लोग मौज करेंगे और हम परेशान रहेंगे कि यह बचत आखिर बचती क्यों नहीं?

महावीर जयंती के मौके पर आज शेयर बाज़ार बंद है तो सोचा ट्रेडिंग टिप्स के बजाय क्यों न दिल की बात कर ली जाए। असल में कुछ दिन पहले हमारे एक पुराने पाठक का तैश भरा मेल आया कि, “कृपया अपने मेल भेजना बंद कर दीजिए क्योंकि मेरी शेयर बाज़ार में कोई दिलचस्पी नहीं है।” हाल ही में मेरे एक सहपाठी के अभिन्न मित्र, एक आयकर आयुक्त ने भी कुछ ऐसी बात कही थी। और तो और, देश के वित्त मंत्रालय में विनिवेश सचिव के रूप में कार्यरत रवि माथुर ने हाल ही में माना है कि उनके पास डीमैट एकाउंट तो कई सालों से है, मगर उन्होंने शेयरों में कोई निवेश अभी तक नहीं किया है।

सोचिए, जो वित्त मंत्रालय आम निवेशकों को शेयर बाज़ार में लाने की मुनादी पीट रहा है, उसी के आला अफसर कन्नी काटे बैठे थे। इससे सहज अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि भारतीय शेयर बाज़ार की हालत क्यों भूतबंगले की बनी हुई है। लेकिन यह सिलसिला ज्यादा नहीं चलने देना चाहिए। शेयर बाज़ार के भीतर चल रही विदेशी निवेशकों की इंद्रसभा को भंग करना जरूरी है। राजनीतिक सत्ता की तरह आर्थिक सत्ता पर भी जनता का कब्जा ज़रूरी है। बाकी विकास का काम बाद में जनता खुद देख लेगी। उसके लिए किसी मनमोहन, चिदंबरम या यशवंत सिन्हा की जरूरत नहीं पड़ेगी।

2 Comments

  1. correct. FII should banned.

  2. वाह उस्ताद वाह! ज्ञान की धरा महावीर जयंती पर। लेकिन सवाल यह है की फिर से भूत बंगले की एंट्री की शर्त यह है की आप के पास माल हो। क्युकी डाकू अभी अभी भी मौजूद हैं

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